*प्रेम इतना कम क्यों है दुनिया में*
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मनुष्य कृत्रिम हो गया है, झूठा हो गया है, पाखंडी हो गया है, इसलिए प्रेम असंभव हो गया है। फिर जिस समाज में हम जीते हैं, यह समाज घृणा पर आधारित है। चोट लगेगी तुम्हें यह बात जान कर, मगर मजबूरी है,सच जैसा है वैसा ही कहना होगा। जिस समाज में आज तक मनुष्य जीता रहा है, वह समाज ईष्या पर, वैमनस्य पर,प्रतिस्पर्धा पर, घृणा पर, शत्रुता पर खड़ा हुआ है। यह समाज प्रेम को स्वीकार नहीं करता।
यह समाज प्रेम के सारे रास्ते अवरुद्ध कर देता है। यह प्रेमी नहीं चाहता, यह सैनिक चाहता है। यह प्रेमी नहीं चाहता, प्रतियोगी चाहता है। प्रेमी होंगे तो संगीनें लेकर कौन छातियों में भोंकेगा? प्रेमी होंगे तो बांसुरी बजेगी, संगीनें खो जाएंगी। प्रेमी होंगे तो मृदंग पर थाप पड़ेगी, लेकिन युद्ध के नगाड़े बंद हो जाएंगे।
प्रेमी होंगे तो जीवन में आनंद होगा, उत्सव होगा, स्पर्धा नहीं होगी। प्रेमी होंगे तो प्रभु को पाने की अभीप्सा होगी, लेकिन धन और पद पाने की दौड़ नहीं होगी।
यह समाज महत्वाकांक्षा सिखाता है। छोटे-छोटे बच्चों में हम महत्वाकांक्षा का जहर भरते हैं। फिर कैसे प्रेम पैदा हो ?
*प्रेम पंथ ऐसो कठिन*
*🌹ओशो*✍🏻♥
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