*श्रीकृष्ण गोविन्द हरे मुरारे हे नाथ नारायण वासुदेवाय !*


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*🙏🏻🌼🙏।। जय श्री कृष्णा ।।🙏🏻🌼🙏🏻*
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*श्रीकृष्ण गोविन्द हरे मुरारे हे नाथ नारायण वासुदेवाय !*


श्री = निधि


कृष्ण = आकर्षण तत्व


गोविन्द = इन्द्रियों को वशीभुत करना गो-इन्द्रि, विन्द बन्द करना, वशीभूत


हरे = दुःखों का हरण करने वाले


मुरारे = समस्त बुराईयाँ- मुर (दैत्य)


हे नाथ = मैं सेवक आप स्वामी


नारायण = मैं जीव आप ईश्वर


वासु = प्राण


देवाय = रक्षक


अर्थात : “हे आकर्षक तत्व मेरे प्रभो, इन्द्रियों को वशीभूत करो, दुःखों का हरण करो, समस्त बुराईयों का बध करो, मैं सेवक हूँ आप स्वामी, मैं जीव हूं आप ब्रह्म, प्रभो ! मेरे प्राणों के आप रक्षक हैं ।


।।*श्री कृष्ण शरणम ममः ।।


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*👣🙏🏻🌼  ।।ऊँ नमो नारायणाय:।। 🌼🙏🏻🕉*
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