श्री सांभर लेक गाँव कठे - सांभर झील कहाँ ( राजस्थानी कविता )




👉 श्री सांभर लेक गाँव कठे🌾🏘


क्यूँ  परदेसा जावे भाई,
क्यूँ भटके है  अठे  बठे।
सारी दुनिया घूम ले चाहे,सांभर लेक  सो गाँव कठे।


इण माटी में जन्म लियो,
या तकदीरां री बात है।
किस्मत सुं ही लोगां ने, 
मिल पावे या सौगात है।
सुख शांति रो यो जीवन,
नहीं मिलेला हर जठे।
सारी दुनिया घूम ले चाहे,
* सांभर लेक  सो गाँव कठे।


घणो  कमाणे  रे चक्कर मे,
क्यूँ बावळो होवे है। 
क्यूँ  दौलत री भूख में,
थारे  मन रो चैन खोवे है।
जो आनंद गाँव में है,
नहीं  मिलेला और  कठे।
सारी दुनिया घूम ले चाहे, 
* सांभर लेक  सो गाँव कठे।


बाळपणे रा साथीड़ा भी,
तने अठे ही मिल जासी।
हंसी मजाक,ज्ञान री बातां,
सारो स्वाद अठे आसी।
गाँव खानी कर ले मुंडो,
मत ना फोड़ा पाय बठे।
सारी दुनिया घूम ले चाहे, 
* सांभर लेक * सो गाँव कठे।


रुखो सुखो खाकर भी तूँ,
अठे स्वस्थ रह पावेला।
शहर  है  बीमारी  रा  घर,
रोज दवाई  खावेला।
सुख सुं जीणो चावे तो,
पाछो आ  अठे।
सारी दुनिया घूम ले चाहे, 
* सांभर लेक * सो गाँव कठे।
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 सांभर लेक


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