पितृपक्ष एवं श्राद्ध का अर्थ


 


पितृपक्ष एवं श्राद्ध का अर्थ


*‘श्रद्धया दीयते यत् तत् श्राद्धम्।’*
          *‘श्राद्ध’ का अर्थ है श्रद्धा से जो कुछ दिया जाए। पितरों के लिए श्रद्धापूर्वक किए गए पदार्थ-दान (हविष्यान्न, तिल, कुश, जल के दान) का नाम ही श्राद्ध है। श्राद्धकर्म पितृऋण चुकाने का सरल व सहज मार्ग है। पितृपक्ष में श्राद्ध करने से पितरगण वर्षभर प्रसन्न रहते हैं।*
          श्राद्ध-कर्म से व्यक्ति केवल अपने सगे-सम्बन्धियों को ही नहीं, बल्कि ब्रह्मा से लेकर तृणपर्यन्त सभी प्राणियों व जगत को तृप्त करता है। पितरों की पूजा को साक्षात् विष्णुपूजा ही माना गया है।


*🌹पितर पक्ष के माध्यम से जीवित माता पिता बुजुर्गों का सम्मान और ज्यादा बढ़ जाता है; हमारे यहां जब मरे हुए पितरों के लिए इतना सम्मान है तो जो जीवित हैं उनका कितना सम्मान होगा यह विचारणीय है।🌹*


भाद्रपद शुक्ल पूर्णिमा से पितरो का दिन आरम्भ होता है जो अमावस्या तक रहता है ।
मनुष्यो का एक मास पितरो का एक दिन रात होता है।
अपने मृत पितृ गण के उद्देश्य से श्रद्धा पूर्वक किये जाने वाले कर्म को श्राद्ध कहा जाता है ।
*आयुः प्रजां धनं विद्यां स्वर्गं मोक्षं सुखानि च ।*
*प्रयच्छन्ति तथा राज्यं पितरः श्राद्धतर्पितः ।।*
श्राद्ध से पितर तृप्त होकर दीर्घ आयु ,संतान,धन विद्या ,राज्य,सुख स्वर्ग मोक्ष प्रदान करते है ।



*पितरों का आहार है अन्न-जल का सारतत्व है।*
          
जैसे मनुष्यों का आहार अन्न है, पशुओं का आहार तृण है, वैसे ही पितरों का आहार अन्न का सार-तत्व (गंध और रस) है। अत: वे अन्न व जल का सारतत्व ही ग्रहण करते हैं। शेष जो स्थूल वस्तु है, वह यहीं रह जाती है।
वें वायवीय शरीर धारण कर रहते है। पितर मनोजव होते है ये मन की गति वाले होते है स्मरण करने से आ जाते है; जो ब्राह्मण सत्य,निर्लोभी,शुद्ध आचार विचार वाले ,क्षमाशील,धर्म को जानने वाले पालन करने वाले ,सौम्य भगवद् प्रेमी हो ऐसे ब्राह्मणों के साथ भोजन कर तृप्त हो जाते है ।
क्योकि  ऐसे ब्राह्मण के मुख से देवता और पितर अन्न स्वीकार करते है।
मृत्युतिथी अनुसार ब्राह्मण भोजन कराना चाहिये।


श्राद्ध में तुलसी की महिमा
          तुलसी से पिण्डार्चन किए जाने पर पितरगण प्रलयपर्यन्त तृप्त रहते हैं। तुलसी की गंध से प्रसन्न होकर गरुड़ पर आरुढ़ होकर विष्णुलोकचले जाते हैं।


न करा सके तो पंचबलि तो दान करना ही चाहिये।
१ गोबलि गाय के लिये ग्रास
२ श्वानबलि कुत्ते के लिये 
३ काकबलि कौवें के लिये 
४ देवादिबलि देवता आदि के लिये 
५ पिपीलिकादिबलि चींटी आदि के लिये
भोजन तैयार हो जाने पर थोडा थोडा पंचबलि निकाले ।


ये भी न हो सके तो गाय को रोज घास खिलाना चाहिये ।



  *आश्विनमास के पितृपक्ष में पितरों को यह आशा रहती है कि हमारे पुत्र-पौत्रादि हमें अन्न-जल से संतुष्ट करेंगे; यही आशा लेकर वे पितृलोक से पृथ्वीलोकपर आते हैं लेकिन जो लोग–पितर हैं ही कहां?–यह मानकर उचित तिथि पर जल व शाक से भी श्राद्ध नहीं करते हैं, उनके पितर दु:खी व निराश होकर शाप देकर अपने लोक वापिस लौट जाते हैं और बाध्य होकर श्राद्ध न करने वाले अपने सगे-सम्बधियों का रक्त चूसने लगते हैं। फिर इस अभिशप्त परिवार को जीवन भर कष्ट-ही-कष्ट झेलना पड़ता है और मरने के बाद नरक में जाना पड़ता है।*
          *मार्कण्डेयपुराण में बताया गया है कि जिस कुल में श्राद्ध नहीं होता है, उसमें दीर्घायु, नीरोग व वीर संतान जन्म नहीं लेती है और परिवार में कभी मंगल नहीं होता है।*


धन के अभाव में कैसे करें श्राद्ध?
          *ब्रह्मपुराण में बताया गया है कि धन के अभाव में श्रद्धापूर्वक केवल शाक से भी श्राद्ध किया जा सकता है। यदि इतना भी न हो तो अपनी दोनों भुजाओं को उठाकर कह देना चाहिए कि मेरे पास श्राद्ध के लिए न धन है और न ही कोई वस्तु। अत: मैं अपने पितरों को प्रणाम करता हूँ; वे मेरी भक्ति से ही तृप्त हों।*



पितर पवित्र अन्न जल चाहते हैं, भ्रष्टाचार या चोरबाजारी से कमाया हुआ नहीं। पवित्र अन्न जल चाहे कितनी ही अल्प मात्रा में और साधारण क्यों न हो, उससे ही हमारे पितर संतुष्ट होते हैं, अन्यथा नहीं। 


          *पितृपक्ष पितरों के लिए पर्व का समय है, अत: प्रत्येक गृहस्थ को अपनी शक्ति व सामर्थ्य के अनुसार पितरों के निमित्त श्राद्ध व तर्पण अवश्य करना चाहिए।*


श्राद्ध तिथियाँ


श्राद्ध करने का सीधा संबंध पितरों यानी दिवंगत पारिवारिकजनों का श्रद्धापूर्वक किए जाने वाला स्मरण है, जो उनकी मृत्यु की तिथि में किया जाता हैं। अर्थात् पितर प्रतिपदा को स्वर्गवासी हुए हों, उनका श्राद्ध प्रतिपदा के दिन ही होगा। इसी प्रकार अन्य दिनों का भी, लेकिन विशेष मान्यता यह भी है कि 
*पिता का श्राद्ध अष्टमी के दिन और माता का नवमी के दिन किया जाए।* 
परिवार में कुछ ऐसे भी पितर होते हैं, *जिनकी अकाल मृत्यु हो जाती है, यानी दुर्घटना, विस्फोट, हत्या या आत्महत्या अथवा विष से। ऐसे लोगों का श्राद्ध चतुर्दशी के दिन किया जाता है।*
साधुऔर सन्यासियों का श्राद्ध द्वादशी के दिन
 *जिन पितरों के मरने की तिथि याद नहीं है, उनका श्राद्ध अमावस्या के दिन किया जाता है।*
जीवन मे यदि कभी भूले-भटके माता-पिता के प्रति कोई दुर्व्यवहार, निंदनीय कर्म या अशुद्ध कर्म हो जाए तो पितृ पक्ष में पितरों का विधिपूर्वक ब्राह्मण को बुलाकर दूब, तिल, कुशा, तुलसीदल, फल, मेवा, दाल-चावल, पूरी व पकवान आदि सहित अपने दिवंगत माता-पिता, दादा-ताऊ, चाचा, परदादा, नाना-नानी आदि पितरों का श्रद्धापूर्वक स्मरण करके श्राद्ध करने से सारे ही पाप कट जाते हैं। 
यह भी ध्यान रहे कि ये सभी श्राद्ध पितरों की दिवंगत यानि मृत्यु की तिथियों में ही किए जाएँ। 


*शाम के समय घर के द्वार पर एक दीपक जला कर पितरो का ध्यान करना चाहिए।*


*होशपूर्वक विचार और कार्य*


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