शरद पूर्णिमा


शरद पूर्णिमा


चांदनी  मूं  काणि  सुहिणी  राति  आ
साणु मुंहिंजो मनु न बी् का ताति आ  


ऋतु  रंगीली  आ  हवा में हीर आ
मनु लुभायो ख़ूबु  केसर खीर आ
चंड जी थी  चाल  मनु  मोहे वञे
पास प्रीतमु आ सुठी तकदीर आ
अजु् शरद जी पूर्णिमा सौगाति आ


अजु् त का चांदी लगे् थी राति भी
ख़ूबु तारनि  जी  सजे बाराति थी
थो  वहे  अमृतु नहर आ चंड जी
ज_णु वसे का सुखनि जी बरसाति थी
अजु् मिली अहिड़ी मिठी का डा्ति आ


नींहं  जी  रसधार  ई   वहंदी  वञे
हर कदम ते राह बसि मिलंदी वञे
हिकु सफल मक्सदु जिअण जो थी पवे
प्यार जी पुल का पकी ठहंदी वञे
करि पको विश्वासु सउखी बाति आ


केटी दादलाणी


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