【क्या तीर्थ है क्या अतीर्थ है】
सत्यतीर्थं क्षमा तीर्थं तीर्थमिन्द्रियनिग्रहः।
सर्वभूतदयातीर्थं तीर्थमार्जवमेव च।।
【स्कन्दपुराण काशीखण्ड ६/३०】
सत्य तीर्थ है,क्षमा करना भी तीर्थ है,अपने इंद्रियोंपर नियंत्रण रखना भी तीर्थ है,समस्त प्राणीयों पर दया करना भी तीर्थ है और अपने स्वभावमें सरलता रखना भी तीर्थ के समान है।
दान तीर्थं दमस्तीर्थं संतोषस्तीर्थमुच्यते।
ब्रह्मचर्यं परं तीर्थं तीर्थं च प्रियवादिता।।
【स्कन्दपुराण काशीखण्ड ६/३१】
दान तीर्थ है,मनका संयम भी तीर्थ है,संतोष भी तीर्थ के समान है,ब्रह्मचर्य भी परम तीर्थ है और प्रिय वचन बोलना भी तीर्थ है।
ज्ञान तीर्थं धृतिस्तीर्थं तपस्तीर्थंमुदाहृतम्।
तीर्थानामपि तत्तीर्थं विशुध्दिर्मनसः परा।।
【स्कन्दपुराण काशीखण्ड ६/३२】
ज्ञान तीर्थ है,धैर्य भी तीर्थ है,तप को भी तीर्थ कहा गया है। समस्त तीर्थो में श्रेष्ठ तीर्थ तो अन्तःकरण की शुद्धि है।
दानमिज्या तपः शौचं तीर्थसेवा श्रुतं तथा।
सर्वाण्येतान्यतीर्थानि यदि भावो न निर्मल :।।
【स्कन्दपुराण काशीखण्ड ६/३९】
अन्तःकरण का भाव पवित्र नही है तो दान, यज्ञ तप शौच तीर्थसेवन,शास्त्र श्रवण , और स्वाध्याय सभी अतीर्थ हो जाते हैं।
ध्यानपूते ज्ञानजले रागद्वेषमलापहे।
य: स्नाति मानसे तीर्थे स याति परमां गतिम्।।
【स्कन्दपुराण काशीखण्ड ६/४१】
ध्यानके द्वारा पवित्र हुआ तथा ज्ञानरूपी जलसे भरे हुए रागद्वेष रूपी मल दूर करने वाले मानसतीर्थ में जो स्नान करता है वही परम् गतिको प्राप्त होता है।
।।ॐ नमो नारायणाय।।
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