सिंधी - समाज,भाषा-साहित्य
पृष्ठभूमि
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सिंध अविभाजित भारत का सुदूर पश्चिमी प्रदेश है।भारत विभाजन के समय से अब यह प्रदेश पाकिस्तान देश का एक प्रदेश है।
सिंध प्रांत प्रायः सिंधु नदी की निचली घाटी के रूप में जाना जाता है।
प्राचीनकाल में इसकी सीमाएँ कश्मीर,कँधार तथा कन्नौज से और दक्षिण में सौराष्ट्र से जाकर मिलती थीं।
सिंध का इतिहास अत्यंत प्राचीन है।भू वैज्ञानिकों की मान्यता है कि सिंध प्रदेश का जन्म सिंधु अर्थात् समुद्र से हुआ।कभी यहाँ समुद्र था।भूकंप के कारण समुद्र का तल ऊपर उभर आया,और सिंधु जल सरक गया;इस कारण इस इस उभरी भूमि को सिंध कहा गया।
इस भूमि पर रहने वाले कालांतर में सिंधी कहलाए।वे कौन थे या कहाँ से आए विद्वानों में विविध मत हैं।
सिंध के विशिष्ट निवासी या तो नदी तट पर बसे सामान्य जन या नाविक थे अथवा रेगिस्तान निवासी और ऊँट चालक।एक समय था जब फीनेशियन व्यापारियों को सिंधी वश का बताया जाता था।
भारत का सीमा प्राँत होने के कारण अनेक ज़ातियों ने सिंध पर आक्रमण किया या गुज़रे,वे कुछ न कुछ अपना प्रभाव छोड़ते गए ।
समय-समय पर सिंध व सिंधियों के इस तरह के विनाश ने सिंधियों के चरित्र को परिवर्तनशील/समायोजनशील बना दिया।दूसरे, विभिन्न ज़ातियों से मेलजोल बढ़ाने तथा व्यापार के लिए सुदूर स्थानों पर जाने से सिंधी लोग उन वर्जनाओं और कुंठाओं से मुक्त हैं ; जो प्रायः अन्य भारतीयों में पाई जाती हैं।इस समुदाय में छुआछूत बिलकुल नहीं है।दूसरी ओर सिंधियों ने परिस्थितियों से सामंजस्य स्थापित करने की अपार शक्ति प्रदर्शित की है।
->सर जान मार्शल ने सिंध प्रदेश की सिंधी संस्कृति के लिए उल्लेख किया है कि -"यह अदभुत् संस्कृति है,यह कई दृष्टियों से मिश्र तथा मेसोपोटामिया से भी अधिक भव्य है"।
सिंधी जीवन संस्कृति पर सिंध नदी का अतुल प्रभाव रहा है।ॠग्वेद में इसका उल्लेख दो दर्जन बार से अधिक हुआ है।रामायण काल में सिंध जाकर सीता की खोज करने का भी संदर्भ मिलता है।और महाभारत काल में सिंध के शासक जयद्रथ की हत्या का अर्जुन ने संकल्प लिया था।
भाषाः-
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->सिंधी नितांत संस्कृत मूल की भाषा है : डा.अर्नेल्ट ट्रम्प,1872
->ब्राचड़ सिंधुदेश में जन्मी है : व्याकरणाचार्य मार्कंडेय
->सिंधी की सीधी पूर्वज ब्राचड़ अपभ्रंश थी : जार्ज ग्रियर्सन
->ट्रम्प और ग्रियर्सन के मत से सहमत हूँ : डॉ.यू.एम.दाउदपोटा
(अरबी स्कालर)
->सिंधी भाषा का मूल संस्कृत प्राकृत भाषा है : डॉ.नबीबख़्श ख़ान बलोच
->'सिंधी संस्कृत की ब्राचड़ अपभ्रंश से उत्पन्न हुई है' इस पर विद्वान व राजनेता जयरामदास दौलतराम ने आपत्ति करते हुए अपने तर्क प्रस्तुत किए हैं।
~>निष्कर्ष यह कि सिंधु सभ्यता की लिपि जब तक पढ़ी नहीं जा सकेगी तब तक यह विवाद समाप्त नहीं होगा।
प्रो.भेरूमल के अनुसार सिंधी भाषा का जो आज वर्तमान स्वरूप है वह लगभग ईसवी सन् 1100 में अलग भाषा बनी।
लिपिः-
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सन् 1843 में जब अंग्रेज़ों ने सिंध पर विजय प्राप्त की तब आम जन सिंधी भाषा 5 प्रकार से लिख रहा था किंतु शासन की लिपि फ़ारसी थी,जब शासन बदल गया तो अंग्रे़ज़ों ने विद्वानों के सहयोग से अरबी,फ़ारसी,देवनागरी के वर्णों के संयोजन से मानकीकरण करते हुए 52 वर्णों की नई वर्णमाला तैयार तो कराई किंतु लिपि परशियो-अरेबिक रखी।
भारत में वर्तमान में सिंधी के लिए शासकीय स्तर पर दो लिपियाँ मान्यता प्राप्त हैं।
भाषा वैज्ञानिक विशेषताः-
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सिंधी स्वरांत भाषा है।यह प्रवृत्ति इतनी प्रबल है कि अंग्रेज़ी,
फ़ारसी-अरबी भाषाओं के व्यंजनांत शब्द भी सिंधी में स्वरांत बन जाते हैं-
मास्टर् -- मास्तरु
कॉलेज् -- कालेजु
कोशिश् -- कोशिशि
ख़ुश -- ख़ुशि
सबूत् -- सबूतु
संस्कृत अकारांत शब्दों का अंतिम स्वर जहाँ हिंदी आदि कई आधुनिक आर्य भाषाओं में लुप्त हो जाते हैं , सिंधी में ' उ ' में बदल जाते हैं।
कर्ण -- कान् -- कनु
हस्त --हाथ् -- हथु
दँत -- दाँत् -- ॾंदु
सिंधी में हिंदी की तुलना में एक ही शब्द से संबंधों का बोध हो जाने की विशेषता है।
चचेरा भाई -- सौटु
ममेरी बहन -- मारोटि
समधी का बेटा- सेणोटु
किंतु अब प्रादेशिक भाषाओं के संपर्क से स्थानीय व अंग्रेज़ी शब्द प्रयोग बढ़ गया है।कज़िन का प्रयोग बढ़ा है।
साहित्य का विकासः
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अधिकांश सिंधी साहित्य का मूल स्त्रोत धर्म अथवा प्रचलित लोक कथाएँ हैं।सिंधी दरियाशाह/जलदेवता/वरुणदेव की पूजा
-आराधना करते हैं।और यही प्रमुख सिंधी लोककथा है झूलेलाल की।झूलेलाल को ही सिंधी वरुणावतार मानते हैं।उनकी स्तुति के गीतों / भजनों को पंजड़ा कहते हैं।
दलूराय की नगरी के विनाश की कथा सिंधी उपाख्यानों में बार- बार उभरकर आती है।इसका संबंध सिंधु नदी के प्रवाह बदलने से है।सिंध नदी से संबंधित दँत कथाओं के बाद धार्मिक दँतकथाओं ने स्थान लिया।
सिंधी साहित्य में 7 प्रख्यात प्रेमाख्यान हैं।जिन्हें शाह अब्दुल लतीफ़ ने अपने काव्य का आधार बनाकर अमर कर दिया।
विद्वानों में यह सहमति है कि सिंधी साहित्य 16वीं शताब्दी की तीसरी दशाब्दी से लिखित रूप में आरंभ होता है।इससे पहले लोक कथाएँ और लोकगीत प्रचलित थे।सिंधी साहित्य की आधारभूमि रहस्यवाद है।जिसे सूफ़ीमत या तसवुफ़ भी कहा गया है।जो पुरातन भारतीय सिद्धांतों -वेदांत,योग व भक्ति आदि पर आधारित है।सिंधी साहित्य के विकासक्रम को 3 कालखंडों में विभाजित किया गया है।
1-आदिकाल : 712 - 1520
712 में अरबों ने सिंध पर विजय प्राप्त की जिसका सिंधी भाषा पर प्रभाव पड़ा।समा व सूमरा धर्मान्तरित राजपूतों का काल 1050-1520 था।इस काल में सिंधी का अपेक्षित बेहतर विकास हुआ। किंतु अधिकांश साहित्य मौखिक रूप में प्राप्त हुआ है।जिसे चारणों,भाटों ने खूब गाया।
2-मध्यकाल : 1520 - 1843
इस काल में सिंध पर अरगूनों,
तरखा़नों,मुग़लों.कल्होड़ों और मीरों ने शासन किया।सिंधी साहित्य का यह स्वर्णिम काल कहा जाता है।शाह अब्दुल लतीफ़
(1689-1752),अब्दुल वहाब सचल सरमस्त(1739-1829),
चैनराइ बचोमल दतारामाणी सामी(1743-1850) सिंधी साहित्य की त्रिमूर्ति कहे जाते हैैं।शाह ने प्रेम कहानियों के माध्यम से ईश्वर प्राप्ति का मार्ग दिखाया।सचल को इन्क़लाबी शायर कहा गया है।और सामी ने वेदों की व्याख्या सिंधी कविता में की है।
3-आधुनिक काल :1843-1947 इस काल में औपचारिक सिंधी शिक्षा व पद्य से अधिक गद्य का विकास हुआ।
4-अन्य : 1947 से अब तक कथा साहित्य का विकास तो हुआ किंतु अभी कथेतर सिंधी साहित्य की स्थित कमजोर दृष्टिगोचर हो रही है।
राजाश्रयः
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निर्वसित सिंधी भाषा को 20 साल बाद सर्वप्रथम 10 अप्रैल,सन् 1967 ई. में राजाश्रय प्राप्त हुआ।संविधान की आठवीं अनुसूची में 15 वीं भाषा के रूप में संसद में स्वीकृत हुई।
फिर 20 साल बाद संघ लोक सेवा आयोग में प्रतियोगी परीक्षा के लिए आई,अभी गत वर्ष नेट परीक्षा देने के लिए भी द्वार खुल गए हैं।
1994 से मानव संसाधन विकास मंत्रालय के नियंत्रण में राष्ट्रीय सिंधी भाषा विकास परिषद् कार्यरत है।इसके द्वारा 7 विश्वविद्यालयों में सिंधी के अध्ययन केंद्र खोले गए हैं।वर्तमान में 7 राज्यों में राजाश्रय प्राप्त राज्य अकादमियाँ कार्य कर रही हैं।
ग़ैर सरकारी स्तर पर देश भर में आरंभ हुए शिक्षण संस्थाओं की अब स्थित नाज़ुक है। आम सिंधी की अधिकतर रुचि भाषा,साहित्य व शिक्षा के विकास की तुलना में मनरंजन में अधिक दिखती है फिर भी समाज आशान्वित है।
ज्ञानप्रकाश टेकचंदानी"सरल"
सलाहकारःसंत कँवरराम साहिब सिंधी अध्ययन केंद्र(डॉ.राममनोहर लोहिया अवध विश्वविद्यालय, अयोध्या)
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