#बलिदान_दिवस_महाराजा_दाहिर_सेन
एक ऐसे #हिन्दू_राजा दाहिर सेन जो कि #सिंधुपति थे सिन्धु राज्य के राजा थे, जिनका जन्म 663 ईसवी में हुआ था और 712 ईसवी में भूमि कि रक्षा करते हुए उन्होंने #बलिदान दे दिया था ।
आज के बलोचिस्तान ईरान कराची और पुरे सिन्धु इलाके के राजा थे दाहिर सेन,
भारत को लूटने और इस पर कब्जा करने के लिए पश्चिम के #रेगिस्तानों से आने वाले हमलावरों का वार सबसे पहले सिन्ध कि वीरभूमि को ही झेलना पड़ता था। इसी सिन्ध के राजा थे दाहिरसेन जिन्होंने #युद्धभूमि में लड़ते हुए प्राणाहुति दी। उनके बाद उनकी पत्नी, बहन और दोनों पुत्रियों ने भी अपना बलिदान देकर भारत में एक नयी परम्परा का सूत्रपात किया ।
सिन्ध के महाराजा चच के असमय देहांत के बाद उनके 12 वर्षीय पुत्र दाहिरसेन गद्दी पर बैठे। राज्य की देखभाल उनके चाचा चन्द्रसेन करते थे पर छह वर्ष बाद चन्द्रसेन का भी देहांत हो गया। अतः राज्य कि जिम्मेदारी 18 वर्षीय दाहरसेन पर आ गयी। उन्होंने देवल को राजधानी बनाकर अपने शौर्य से राज्य कि सीमाओं का कन्नौज, कंधार, कश्मीर और कच्छ तक विस्तार किया।
राजा दाहरसेन एक प्रजावत्सल राजा थे। गौरक्षक के रूप में उनकी ख्याति दूर-दूर तक फैली थी। यह देखकर ईरान के शासक हज्जाम ने 712 ई. में अपने सेनापति मोहम्मद बिन कासिम को एक विशाल सेना देकर सिन्ध पर हमला करने के लिए भेजा। कासिम ने देवल के किले पर कई आक्रमण किये पर राजा दाहरसेन और हिन्दू वीरों ने हर बार उसे पीछे धकेल दिया।।
सीधी लड़ाई में बार-बार हारने पर कासिम ने धोखा किया। 20 जून 712 ई. को उसने सैकड़ों सैनिकों को हिन्दू महिलाओं जैसा वेश पहना दिया। लड़ाई छिड़ने पर वे महिला वेशधारी सैनिक रोते हुए राजा दाहरसेन के सामने आकर अरबी सैनिकों से उन्हें बचाने की प्रार्थना करने लगे। राजा ने उन्हें अपनी सैनिक टोली के बीच सुरक्षित स्थान पर भेज दिया और शेष महिलाओं कि रक्षा के लिए तेजी से उस ओर बढ़ गये जहां से रोने के स्वर आ रहे थे।
इस दौड़भाग में वे अकेले पड़ गये। उनके #हाथी पर #अग्निबाण चलाये गये जिससे विचलित होकर वह खाई में गिर गया। यह देखकर शत्रुओं ने राजा को चारों ओर से घेर लिया। राजा ने बहुत देर तक संघर्ष किया पर अंततः शत्रु सैनिकों के भालों से उनका शरीर क्षत-विक्षत होकर #मातृभूमि की गोद में सदा के लिये सो गया। इधर महिला वेश में छिपे अरबी सैनिकों ने भी असली रूप में आकर हिन्दू सेना पर बीच से हमला कर दिया। इस प्रकार हिन्दू वीर दोनों ओर से घिर गये और मोहम्मद बिन कासिम का पलड़ा भारी हो गया।
राजा दाहरसेन के बलिदान के बाद उनकी पत्नी लाड़ी और बहन पद्मा ने भी युद्ध में वीरगति पाई। कासिम ने राजा का कटा सिर, छत्र और उनकी दोनों पुत्रियों (सूर्या और परमाल) को बगदाद के खलीफा के पास उपहारस्वरूप भेज दिया। जब खलीफा ने उन वीरांगनाओं का आलिंगन करना चाहा तो उन्होंने रोते हुए कहा कि कासिम ने उन्हें अपवित्र कर आपके पास भेजा है।
इससे खलीफा भड़क गया। उसने तुरन्त दूत भेजकर कासिम को सूखी खाल में सिलकर हाजिर करने का आदेश दिया। जब कासिम कि लाश बगदाद पहुंची तो खलीफा ने उसे गुस्से से लात मारी। दोनों बहनें महल की छत पर खड़ी थीं। जोर से हंसते हुए उन्होंने कहा कि हमने अपने देश के अपमान का बदला ले लिया है। यह कहकर उन्होंने एक दूसरे के सीने में विष से बुझी कटार घोंप दी और नीचे खाई में कूद पड़ीं। खलीफा अपना सिर पीटता रह गया।
बाद में इन दोनों बहनों कि लाशों को घोड़े में बाँध कर पूरे बगदाद में घसीटा गया आज धर्म कि रक्षा के लिए पूरे परिवार को न्योछावर कर देने वाले उस महान धर्मरक्षक *हिन्दू राजा दाहिरसेन को बारम्बार नमन।
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