सदाहयात हरी दिलगीर


अजु_ सदाहयात  *दादा हरी दिलगीर* , प्रोफेसर, कवी  ऐं लेखक जी वरिसी (Death Anniversary) आहे। दिवंगत जी आत्मा खे शत शत  नमनु ऐं वंदनु.।

 

! *दादा हरि दिलगीर* !


आज श्री हरि गुरदीनोमल दरयानी 'हरि दिलगीर' की पुण्यतिथि है, जिनका जन्म 15 जून, 1916 को सिंध के लरकाना में हुआ था। वे एक प्रख्यात और निपुण कवि थे। वे काव्य तकनीक और छंद के उस्ताद थे, जिसे उन्होंने नवाज़ अली जाफ़री 'नियाज़' से सीखा था। वे कवि किशनचंद 'बेवस' के प्रभाव में आए और सिंधी भाषा की मिठास और सुंदरता सीखी। उनका दृष्टिकोण सकारात्मक था। वे आशा के कवि और दृढ़ आशावादी थे। उनकी कविता के आवश्यक पहलू हैं: सहजता, अभिव्यक्ति का सहज प्रवाह, विचारों की उड़ान और सरल और मधुर शब्दों में अर्थ की गहराई।


वे गांधीधाम मैत्री मंडल के सिविल इंजीनियरिंग संस्थान के संस्थापक प्राचार्य थे, जो सिविल इंजीनियरिंग में तीन वर्षीय डिप्लोमा पाठ्यक्रम प्रदान करता था, यह उनके मार्गदर्शन और नेतृत्व में था, यह पाठ्यक्रम उस समय बहुत सफल रहा जब गांधीधाम और आदिपुर टाउनशिप का निर्माण चल रहा था।

 एक सिविल इंजीनियर और अच्छे प्रशासक के रूप में अपनी सफलता के अलावा, स्वर्गीय श्री हरि दरयानी एक बेहद आशावादी और संवेदनशील कवि थे और मानवीय भावनाओं के प्रति उनकी गहरी संवेदनशीलता थी। उन्होंने कच्छ के पिछड़े जिले में तकनीकी शिक्षा के उत्कृष्ट केंद्र की आवश्यकता महसूस की, जो न केवल इस जिले बल्कि पूरे गुजरात राज्य के लोगों के लिए प्रकाश की किरण बन सके। उन्होंने कच्छ जिले में पहली बार पूर्ण विकसित डिप्लोमा स्तर के कॉलेज की योजना बनाई। उन्होंने बॉम्बे के एक व्यवसायी स्वर्गीय श्री प्रभुदास तोलानी से बातचीत शुरू की और उनसे कच्छ जिले में शिक्षा के लिए कुछ करने का अनुरोध किया। स्वर्गीय प्रभुदास तोलानी (काका) स्वर्गीय हरि दरयानी के अनुरोध पर आदिपुर आए और गांधीधाम कॉलेजिएट बोर्ड की स्थापना की। तब से पीछे मुड़कर नहीं देखा गया, 1967 में मैकेनिकल और इलेक्ट्रिकल इंजीनियरिंग में डिप्लोमा पाठ्यक्रम जोड़े गए  1970 में, अधिक मशीनों और उपकरणों को समायोजित करने के लिए कार्यशाला का विस्तार किया गया, और संस्थान को टोलानी फाउंडेशन गांधीधाम पॉलिटेक्निक के रूप में जाना जाने लगा


*महत्वपूर्ण साहित्यिक उपलब्धियाँ/योगदान:

हरि दिलगीर ने सिंधी में 20 पुस्तकें लिखी हैं।  इनमें से कुछ महत्वपूर्ण नीचे दिए गए हैं: 

1. मौज कै मेहराँ (परमानंद का सागर), कविता, 1966.

2. पल पल जो पारलौ (हर पल की गूँज), कविता, 1977.

3. अमर गीत, गीता पर अनुवाद और टिप्पणी, कविता, 1981.

4. मज़ेदार गीत (बच्चों के लिए मज़ेदार गीत), कविता, 1983.

5. चोलो मुँहिजो चिका में (मेरा मैला कपड़ा), आत्मकथा, 1987.

6. सुबह जो सुहाग (सुबह की प्रेरणा), 2001.

पुरस्कार/सम्मान के रूप में मान्यता:

• पल पल जो पारलौ पुस्तक के लिए पुरस्कार, 1979 (साहित्य अकादमी, मानव संसाधन विकास मंत्रालय, भारत सरकार द्वारा नई दिल्ली में)।

 • पुस्तक मजेदार गीत के लिए पुरस्कार, 1984 (केंद्रीय हिंदी निदेशालय, भारत सरकार द्वारा नई दिल्ली में)।


• महत्वपूर्ण योगदान के लिए प्रियदर्शनी पुरस्कार, 1992 (प्रियदर्शनी अकादमी द्वारा मुंबई में)।


• सिंधी कविता में महत्वपूर्ण योगदान के लिए गौरव पुरस्कार, 1993 (गुजरात सिंधी साहित्य अकादमी द्वारा अहमदाबाद में)।


• सिंधी कविता में उत्कृष्ट योगदान के लिए नारायण श्याम पुरस्कार, 1996।


• सिंधी साहित्य में योगदान के लिए इंडसइंड पुरस्कार, 1998 (इंडसइंड फाउंडेशन द्वारा मुंबई में)।


*अतिरिक्त जानकारी:

i) हरि दिलगीर 1994-99 तक सिंधी साहित्य अकादमी, गुजरात के अध्यक्ष थे।


ii) वे गांधीधाम के रोटरी क्लब के पूर्व अध्यक्ष थे।


 iii) वे 1965 में गांधीधाम नगर पालिका के अध्यक्ष थे। iv) गांधीधाम (कच्छ में सिंधियों की नई बस्ती) की स्थापना के बाद से ही वे सिंधियों को नई बस्ती में बसने में कई तरह से मदद करने में सक्रिय रहे। *उनका निधन 11 अप्रैल 2004 को हुआ*


संदनि कविता पेशि आहे:


      !     *मौत*    !


रात ईंदी, ज़रूर अचिणी आ,

कंहिंजे रोकण सा भी न रुकिणी आ,

वक्त ते रात खे अचणु बि खपे।

रात जी गोदि में सुम्ही पवंदुसि,

दूर थींदियूं थकावटूं सारियूं,

रात खां पोइ सुबह ईंदो आहि,

अध छॾियल कम उथी कंदुसि पूरा,

रात ईंदी त का बि कसु नाहे।


मौतु ईंदो, ज़रूर अचिणो आ,

कंहिंजे रुकण सां भी न रुकिणो आ,

वक्त ते मौत खे अचणु बि खपे।

मौत जी गोदि में सुम्ही पवंदुसि,

दूर थींदियूं थकावटूं सारियूं,

धुन्धु नेणनि मां दूर थी वेंदो,

ऐं नईं रोशनी मिली वेंदी।

मौतु जीवन जी हिक ॻुझारत आ,

वक्त ते जा असीं सलींदासीं।


मौत खां पोइ ज़िन्दगी आहे,

जिस्म झूनो छॾे, नओं वठिबो,

मौतु ईंदो, त का बि कसु नाहे।


*हरी दिलगीर*


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सिन्धू थञु ते मां पलियुसि, सिन्धू मुंहिंजी माउ,


आहियां सिन्ध  सपूत मां, हरिको सिन्धी भाउ।

                         

                            *हरि दिलगीर*


*P.S.: दादा हरी दिलगीर कवी *किशिनचंद 'बेवस' ऐं उस्ताद नवाज़ अली 'न्याज़*' खे पंहिंजो गुरु मञिदा  हुआ*

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